Born on Sunday: रविवार को जन्मे लोगों को सबसे बड़ी विशेषता होती है कि ऐसे लोग मेहनती होने के साथ हीं भाग्यशाली, प्रतिभावान, रचनात्मक, आत्मविश्वासी और आशावादी होते हैं। उनमें व्यक्तित्व मे एक स्वाभाविक करिश्मा होता है जो दूसरों को उनकी ओर आकर्षित करता है और शायद यही वजह होता है कि ऐसे लोग अक्सर पार्टियों और महफिलों की जान होते हैं। अपनी इसी खासियत के कारण वे सुर्खियों में रहना पसंद करते हैं और दूसरों के साथ घुलना-मिलना पसंद करते हैं।
Born on Sunday: सूर्य की तरह चमकते सितारे होते है रविवार को जन्मे लोग-प्रतिभावान, आत्मविश्वासी और आशावादी और नेतृत्व की क्षमता वाले
Born on Sunday: रविवार को जन्मे लोगों को सबसे बड़ी विशेषता होती है कि ऐसे लोग मेहनती होने के साथ हीं भाग्यशाली, प्रतिभावान, रचनात्मक, आत्मविश्वासी और आशावादी होते हैं। उनमें व्यक्तित्व मे एक स्वाभाविक करिश्मा होता है जो दूसरों को उनकी ओर आकर्षित करता है और शायद यही वजह होता है कि ऐसे लोग अक्सर पार्टियों और महफिलों की जान होते हैं। अपनी इसी खासियत के कारण वे सुर्खियों में रहना पसंद करते हैं और दूसरों के साथ घुलना-मिलना पसंद करते हैं।
गिद्ध: जानें भारत में कितनी पाई जाती है प्रजातियाँ और कितनी हैं इनकी संख्या
भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियां दर्ज की गई हैं। भारत में विशिष्ट क्षेत्रों और पर्यावासों में गिद्धों की संख्या का आकलन नहीं किया गया है। हालांकि, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अलग-अलग समय पर अपने-अपने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में गिद्धों की संख्या का आकलन करते हैं, जिन्हें मंत्रालय के स्तर पर संकलित नहीं किया जाता है। मंत्रालय के पास उपलब्ध विवरण के अनुसार भारत में गिद्धों की अनुमानित संख्या निम्नलिखित है:
प्रजाति का नाम | अनुमानित संख्या (2017) |
लंबी चोंच वाला गिद्ध ( जिप्स इंडिकस ) | 26,500 |
पतली चोंच वाला गिद्ध ( जिप्स टेनुइरोस्ट्रिस ) | 1000 |
सफ़ेद पीठ वाला गिद्ध ( जिप्स बंगालेंसिस ) | 6000 |
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने राज्य सरकारों के सहयोग से प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के तहत गिद्ध प्रजनन केंद्र स्थापित किए हैं। ये सुविधाएं गंभीर रूप से लुप्तप्राय गिद्ध प्रजातियों जैसे कि लंबी चोंच वाले गिद्ध, सफेद पीठ वाले गिद्ध तथा पतली चोंच वाले गिद्ध के प्रजनन के लिए समर्पित हैं।
- प्रजनन केंद्र
- हरियाणा में पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र
- पश्चिम बंगाल में राजाभटखवा गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र
उल्लेखनीय प्रजनन केंद्रों में हरियाणा में पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र, पश्चिम बंगाल में राजाभटखवा गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र आदि शामिल हैं, जहां गिद्धों को बंद कर के पाला जाता है तथा बाद में उन्हें प्राकृतिक पर्यावासों में छोड़ दिया जाता है।
अगस्त 2006 में, भारत के औषधि महानियंत्रक ने पशु चिकित्सा डाइक्लोफेनाक के उपयोग, बिक्री और निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत सरकार ने पशुओं के उपचार में इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए दवा डाइक्लोफेनाक की शीशी का आकार 3 मिलीलीटर तक सीमित कर दिया है। (Source PIB)
चंद्रयान: वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय लैंडिंग का है लक्ष्य-Facts in Brief
इसरो ने तीन चंद्रयान मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है और चंद्रयान-3 मिशन के परिणामस्वरूप चंद्रमा पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग सफल रही। वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय लैंडिंग के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में क्षमता निर्माण हेतु चंद्रयान मिशनों की एक श्रृंखला की योजना बनाई गई है।
इस दिशा में भारत सरकार ने चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दे दी है, जिसमें नमूना संग्रह की प्रौद्योगिकियों सहित चंद्रमा पर उतरने और पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी की क्षमता का प्रदर्शन किया जाएगा। चंद्रयान-5/लुपेक्स मिशन की योजना उच्च क्षमता वाले लैंडर को प्रदर्शित करने के लिए बनाई जा रही है, जो मानव लैंडिंग सहित भविष्य के लैंडिंग मिशनों के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है।
मानकीकरण, स्वदेशीकरण, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग और बहुविध कार्यात्मकताओं के एकीकरण के माध्यम से मिशनों की लागत प्रभावशीलता के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत सरकार ने जून, 2020 को अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों की घोषणा की है, जिससे प्राइवेट प्लेयर्स को भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण स्तर तक बढ़ाने के लिए एंड-टू-एंड सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाया जा सके। भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 को अंतरिक्ष सुधार दृष्टिकोण को लागू करने के लिए एक व्यापक, समग्र और गतिशील ढांचे के रूप में अप्रैल 2023 में जारी किया गया था।
यह अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की मूल्य श्रृंखला में गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीई) की अधिक भागीदारी को बढ़ावा देने में मदद करता है ताकि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की बड़ी हिस्सेदारी के लिए मजबूत, नवीन और प्रतिस्पर्धी अंतरिक्ष इकोसिस्टम विकसित किया जा सके।
वर्ष 2021 से अब तक 15 अंतरिक्ष यान मिशन (2 संचार, 9 पृथ्वी अवलोकन, 1 नेविगेशन और 3 अंतरिक्ष विज्ञान), 17 प्रक्षेपण यान मिशन (8 पीएसएलवी, 3 जीएसएलवी, 3 एलवीएम3 और 3 एसएसएलवी) और 5 प्रौद्योगिकी प्रदर्शक सफलतापूर्वक पूरे किए जा चुके हैं।
इसरो द्वारा अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए गए उल्लेखनीय उपग्रहों में आर्यभट्ट, एस्ट्रोसैट, मंगलयान, चंद्रयान श्रृंखला, एक्सपोसैट, आदित्य-एल1 जैसे अंतरिक्ष विज्ञान मिशन शामिल हैं।
इसरो ने स्वदेशी उपग्रह आधारित नेविगेशन प्रणाली, आईआरएनएसएस/नाविक श्रृंखला के उपग्रहों को भी सफलतापूर्वक तैनात किया है। इसके अलावा रिसोर्ससैट श्रृंखला और कार्टोसैट श्रृंखला जैसे विभिन्न पृथ्वी अवलोकन उपग्रह भी लॉन्च किए गए।
संचार उपग्रह खंड में उल्लेखनीय प्रक्षेपणों में इनसैट और जीसैट श्रृंखला जैसे इनसैट-4सी, जीसैट-7ए, जीसैट-11, जीसैट-29, जीसैट-9 आदि शामिल हैं।
2021 से अब तक इसरो की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ
- PSLV-C52 ने फरवरी-2022 में EOS-04 उपग्रह (RISAT-1A) के साथ-साथ दो छोटे उपग्रहों - भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) का एक छात्र उपग्रह (INSPIREsat-1) और इसरो का एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह (INS-2TD) सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो भारत-भूटान संयुक्त उपग्रह (INS-2B) का अग्रदूत है।
- जुलाई-2022 में ‘सुरक्षित एवं सतत संचालन प्रबंधन के लिए इसरो प्रणाली (IS4OM) राष्ट्र को समर्पित की गई।
- LVM3 M2/OneWeb India-1 और LVM3 M3/OneWeb India-2 मिशन क्रमशः अक्टूबर 2022 और मार्च 2023 में सफलतापूर्वक पूरे किए गए, जो आत्मनिर्भरता का उदाहरण है और वैश्विक वाणिज्यिक लॉन्च सेवा बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त को बढ़ाता है। PSLV-C54 ने नवंबर 2022 में भारत भूटान सैट (INS-2B) सहित आठ नैनो-उपग्रहों के साथ EOS-06 उपग्रह (ओशनसैट-3) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।
- SSLV-D2 का पहला सफल मिशन फरवरी 2023 में तीन उपग्रहों को कीमती कक्षा में स्थापित करके पूरा किया गया।
- 2023-24 के दौरान कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) में तीन बार पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग एक्सपेरीमेंट (RLV-LEX) सफलतापूर्वक आयोजित किए गए।
- मई 2023 में GSLV-F12/NVS-01 मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया गया। GSLV ने NVS-01 नेविगेशन उपग्रह को तैनात किया, जो दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रहों में से पहला है।
- चंद्रयान-3: LVM3-M4 ने 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। 23 अगस्त, 2023 को ‘शिव शक्ति’ बिंदु (स्टेशन शिव शक्ति) पर विक्रम लैंडर की सुरक्षित और सॉफ्ट-लैंडिंग और चंद्र सतह पर प्रज्ञान रोवर की तैनाती सफलतापूर्वक पूरी की गई। सितंबर-2023 में PSLV-C57 का उपयोग करके आदित्य-L1 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। 6 जनवरी, 2024 को सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु (L1) यानी हेलोऑर्बिट इंसर्शन (HOI) पर अंतरिक्ष यान को सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। PSLV-C58/XPOSAT मिशन जनवरी-2024 में सफलतापूर्वक पूरा किया गया। GSLV F14/INSAT-3DS मिशन (पूरी तरह से MoES द्वारा वित्तपोषित) फरवरी 2024 में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
- एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी के प्रदर्शन के लिए ATV-D03/DFS की दूसरी प्रायोगिक उड़ान जुलाई 2024 में सफलतापूर्वक पूरी की गई।
- SSLV की तीसरी विकासात्मक उड़ान सफल रही। SSLV-D3 ने EOS-08 को अगस्त 2024 में कक्षा में स्थापित किया।
- GSAT-N2 को नवंबर 2024 में सफलतापूर्वक पूरा किया गया।
(Source PIB)
गगनयान मिशन: क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल संरचना के डिजाइन का कार्य पूरा, जानिए मिशन की स्थिति
गगनयान मिशन, मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयास होने के बावजूद, भारत के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक लाभ लेकर आया है। ऐसे कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ मिशन के सकारात्मक प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। गगनयान कार्यक्रम की प्रगति की स्थिति इस प्रकार है:
मानव रेटेड लॉन्च वाहन:
इसका आशय अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित लेने की क्षमता वाले प्रक्षेपण वाहन से है। प्रक्षेपण वाहन की मानव रेटिंग की दिशा में ठोस, तरल और क्रायोजेनिक इंजन सहित प्रणोदन प्रणाली चरणों का ग्राउंड परीक्षण पूरा हो गया है।
क्रू मॉड्यूल एस्केप सिस्टम:
इसका आशय आपातकालीन प्रणाली से है जिसका उद्देश्य प्रक्षेपण के दौरान किसी भी तरह की असफलता की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को प्रक्षेपण वाहन से सुरक्षित दूरी पर ले जाना होता है। पांच प्रकार के क्रू एस्केप सिस्टम सॉलिड मोटर्स का डिजाइन और कार्यान्वयन पूरा हो गया है। सभी पांच प्रकार के सॉलिड मोटर्स का स्टेटिक परीक्षण पूरा हो गया है। क्रू एस्केप सिस्टम (सीईएस) के प्रदर्शन सत्यापन के लिए पहला टेस्ट व्हीकल मिशन (टीवी-डी 1) सफलतापूर्वक पूरा हो गया है।
ऑर्बिटल मॉड्यूल सिस्टम:
क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल संरचना का डिजाइन पूरा हो गया है। एकीकृत मुख्य पैराशूट एयर ड्रॉप टेस्ट और रेल ट्रैक रॉकेट स्लेज टेस्ट के माध्यम से विभिन्न पैराशूट सिस्टम का परीक्षण किया गया है
गगनयात्री प्रशिक्षण:
प्रशिक्षण कार्यक्रम के तीन में से दो सत्र पूरे हो चुके हैं। स्वतंत्र प्रशिक्षण सिम्युलेटर और स्टेटिक मॉकअप सिम्युलेटर का निर्माण किया गया है।
मुख्य आधारभूत ढांचा:
ऑर्बिटल मॉड्यूल तैयारी सुविधा (ओएमपीएफ), अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण सुविधा (एटीएफ) और ऑक्सीजन परीक्षण सुविधा जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएं चालू हो चुकी हैं। मिशन कंट्रोल सेंटर (एमसीसी) सुविधाओं का निर्माण और ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क की स्थापना का काम पूरा होने वाला है।
गगनयान का पहला मानवरहित मिशन:
मानव-रेटेड लॉन्च वाहन के ठोस और तरल प्रणोदन चरण उड़ान एकीकरण के लिए तैयार हैं। C32 क्रायोजेनिक चरण उड़ान एकीकरण के लिए तैयार किया जा रहा है। क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल संरचना का निर्माण पूरा हो चुका है। उड़ान एकीकरण गतिविधियाँ प्रगति पर हैं।
तकनीकी उन्नति और स्पिन-ऑफ:
नई तकनीकें: क्रायोजेनिक इंजन, हल्के पदार्थ, जीवन रक्षक प्रणाली और रोबोटिक्स जैसी उन्नत तकनीकों के विकास का एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव, स्वास्थ्य सेवा और ऊर्जा सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होगा।
रोजगार सृजन: इस मिशन से एयरोस्पेस उद्योग, शोध संस्थानों और संबंधित क्षेत्रों में कई अनेक रोजगारों के अनेक अवसर सृजन की उम्मीद है।
आर्थिक विकास: स्वदेशी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास निवेश को आकर्षित करेगा, घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देगा और आर्थिक विकास में योगदान देगा।
भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करना:
एसटीईएम शिक्षा: यह मिशन युवा प्रतिभाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
राष्ट्रीय गौरव: एक सफल मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाएगा और भारतीय आबादी में विशिष्ट उपलब्धि की भावना को प्रेरित करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और कूटनीति:
वैश्विक भागीदारी: यह मिशन अंतरिक्ष यात्रा करने वाले अन्य देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा, जिससे ज्ञान साझाकरण और संयुक्त उपक्रमों को बढ़ावा मिलेगा।
राजनयिक प्रभाव: भारत का सफल अंतरिक्ष कार्यक्रम इसकी वैश्विक स्थिति और कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ाएगा।
वैज्ञानिक शोध और नवाचार:
सूक्ष्मगुरुत्व प्रयोग: सूक्ष्मगुरुत्व में प्रयोग करने से पदार्थ विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा सहित विभिन्न क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है।
रिमोट सेंसिंग और पृथ्वी अवलोकन: यह मिशन बेहतर मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन और संसाधन प्रबंधन में योगदान दे सकता है।
सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में हरियाणा राज्य सहित पूरे भारत में भारतीय उद्योगों और स्टार्ट-अप की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।(Source PIB)
नैफिथ्रोमाइसिन: जानें भारत की पहली स्वदेश मे निर्मित एंटीबायोटिक के बारे में
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध लंबे समय से एक बढ़ती वैश्विक चिंता का विषय रहा है, दवा कंपनियां दुनिया भर में इससे निपटने के लिए नई दवाएं विकसित करने का प्रयास कर रही हैं। वर्षों की चुनौतियों और अथक प्रयासों के बाद अंततः एक सफलता मिली है। तीन दशकों के शोध और कड़ी मेहनत के बाद भारत ने पहली स्वदेशी मैक्रोलाइड एंटीबायोटिक नैफिथ्रोमाइसिन का निर्माण किया है। यह उल्लेखनीय उपलब्धि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ लड़ाई में फार्मास्युटिकल नवाचार में भारत की बढ़ती क्षमताओं को दर्शाता है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि नैफिथ्रोमाइसिन की सफलता इस बात का प्रमाण है कि भारत की स्वास्थ्य सेवा संबंधी चुनौतियों के लिए स्वदेशी समाधान विकसित करने की क्षमता बढ़ा रही है।
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एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ भारत की लड़ाई
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। दवा प्रतिरोध के परिणामस्वरूप एंटीबायोटिक्स और अन्य रोगाणुरोधी दवाएं अप्रभावी हो जाती हैं और संक्रमण का इलाज करना मुश्किल या असंभव हो जाता है। इससे बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी, विकलांगता और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। जबकि एएमआर समय के साथ रोगाणु में आनुवंशिक परिवर्तनों द्वारा संचालित एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसका प्रसार मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से मनुष्यों, जानवरों और पौधों में रोगाणुरोधी दवाओं के अति प्रयोग और दुरुपयोग से काफी तेज हो जाता है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दा बन गया है, भारत में हर साल लगभग 6 लाख लोगों की जान प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण जाती है। हालांकि भारत एएमआर को संबोधित करने में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है, विशेष रूप से नई दवाओं के विकास के माध्यम से। चरण 3 नैदानिक परीक्षणों के लिए जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) बायोटेक उद्योग कार्यक्रम के अंतर्गत 8 करोड़ रुपये के वित्त पोषण के साथ विकसित नेफिथ्रोमाइसिन के एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। नैफिथ्रोमाइसिन बेहतर रोगी अनुपालन प्रदान करता है और एएमआर से निपटने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
नैफिथ्रोमाइसिन: सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए मील का पत्थर
नैफिथ्रोमाइसिन को आधिकारिक तौर पर 20 नवंबर 2024 को केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा शुरू किया गया था। बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (बीआईआरएसी) के समर्थन से वॉकहार्ट द्वारा विकसित नैफिथ्रोमाइसिन को "मिक्नाफ" के रूप में विपणन किया जाता है। दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले सामुदायिक-अधिग्रहित जीवाणु निमोनिया (सीएबीपी) को लक्षित करता है। यह बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को प्रभावित करता है।
यह अभूतपूर्व एंटीबायोटिक एज़िथ्रोमाइसिन जैसे वर्त्तमान उपचारों की तुलना में दस गुना अधिक प्रभावी है और तीन-दिन के उपचार से रोगी में सुधार होने के साथ-साथ ठीक होने का समय भी काफी कम हो जाता है। नेफिथ्रोमाइसिन को विशिष्ट और असामान्य दोनों प्रकार के दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के इलाज के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह इसे एएमआर (एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस) के वैश्विक स्वास्थ्य संकट के समाधान में एक महत्वपूर्ण बनाता है। इसमें बेहतर सुरक्षा, न्यूनतम दुष्प्रभाव और कोई दवा पारस्परिक प्रभाव नहीं होता है।
नेफिथ्रोमाइसिन का विकास एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, क्योंकि यह 30 से अधिक वर्षों में वैश्विक स्तर पर पेश किया गया, अपनी श्रेणी का पहला नया एंटीबायोटिक है। अमेरिका, यूरोप और भारत में व्यापक नैदानिक परीक्षणों से गुजरने वाली इस दवा को 500 करोड़ रुपये के निवेश से विकसित किया गया है। अब केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) से अंतिम मंजूरी का इंतजार है।
यह नवाचार सार्वजनिक-निजी सहयोग की शक्ति का उदाहरण है और जैव प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमताओं को दिखता है। नैफिथ्रोमाइसिन का सफल आगमन एएमआर के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी उपलब्धि है। यह बहु-दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के इलाज और दुनिया भर में जीवन बचाने की उम्मीद प्रदान करता है।
भारत सरकार ने नैफिथ्रोमाइसिन को विकसित करने के अलावा निगरानी, जागरूकता और सहयोग के उद्देश्य से रणनीतिक पहलों की एक श्रृंखला के माध्यम से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) का मुकाबला करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। ये प्रयास एएमआर नियंत्रण को बढ़ाने, संक्रमण नियंत्रण में सुधार करने और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं। (Source PIB)
28 नए नवोदय विद्यालय स्थापित करने को मिली मंजूरी: देखें लिस्ट
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने नवोदय विद्यालय योजना (केन्द्रीय क्षेत्र की योजना) के अंतर्गत देश के उन जिलों में 28 नवोदय विद्यालय (एनवी) स्थापित करने को मंजूरी दे दी है जहां ये नहीं हैं। इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश मे 08 , असम मे 06, मणिपुर मे 03, कर्नाटक और महाराष्ट्र मे 01-01, तेलंगाना मे 07 और पश्चिम बंगाल मे 02 जिले शामिल हैं।
इस परियोजना को लागू करने के लिए 560 छात्रों की क्षमता वाले एक पूर्ण विकसित नवोदय विद्यालय को चलाने के लिए समिति द्वारा तय मानदंडों के अनुरूप प्रशासनिक ढांचे में पदों के सृजन की आवश्यकता होगी। इस प्रकार 560 x 28 = 15680 छात्र लाभान्वित होंगे।
प्रचलित मानदंडों के अनुसार एक पूर्ण नवोदय विद्यालय 47 व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है और तदनुसार स्वीकृत 28 नवोदय विद्यालय 1316 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष स्थायी रोजगार प्रदान करेंगे।
नवोदय विद्यालय के बारे मे
नवोदय विद्यालय पूरी तरह से आवासीय, सह-शिक्षा विद्यालय हैं जो मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से आए प्रतिभाशाली बच्चों को उनके परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना कक्षा VI से XII तक अच्छी गुणवत्ता वाली आधुनिक शिक्षा प्रदान करते हैं। इन विद्यालयों में प्रवेश चयन परीक्षा के आधार पर दिया जाता है। लगभग 49,640 छात्र हर साल कक्षा VI में नवोदय विद्यालय में प्रवेश लेते हैं।
अब तक, देश भर में 661 स्वीकृत नवोदय विद्यालय हैं [जिनमें एससी/एसटी आबादी की बड़ी संख्या वाले 20 जिलों में दूसरा नवोदय विद्यालय और 3 विशेष नवोदय विद्यालय शामिल हैं]। इनमें से 653 नवोदय विद्यालय चल रहे हैं।
राज्य का नाम | जिले का नाम जहां नवोदय विद्यालय स्वीकृत किया गया | ||
अरूणाचल प्रदेश | ऊपरी सुबनसिरी | ||
क्रदाडी | |||
लेपा राडा | |||
निचला सियांग | |||
लोहित | |||
पक्के-केसांग | |||
शी-योमी | |||
सियांग | |||
असम | सोनितपुर | ||
चराईदेओ | |||
होजाई | |||
मजूली | |||
दक्षिण सलमारा मनाकाचर | |||
पश्चिम कार्बिआंगलोंग | |||
मणिपुर | थऊबल | ||
कांगपोकी | |||
नोनी | |||
कर्नाटक | बेल्लारी | ||
महाराष्ट्र | ठाणे | ||
तेलंगाना | जगतियाल | ||
निजामाबाद | |||
कोठागुडेम भद्राद्री | |||
मेडचल मलकाजगिरी | |||
महबूबनगर | |||
संगरेड्डी | |||
सूर्यपेट | |||
पश्चिम बंगाल | पूर्व बर्धमान | ||
झारग्राम |
हरिमाऊ शक्ति: भारत-मलेशिया का संयुक्त सैन्य अभ्यास-Facts in Brief
यह संयुक्त अभ्यास हरिमाऊ शक्ति एक वार्षिक युद्धाभ्यास कार्यक्रम है जो भारत और मलेशिया के बीच आयोजित की जाती है। यह अभ्यास दोनों देशों के बीच बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। पिछला संस्करण नवंबर 2023 में भारत के मेघालय में उमरोई छावनी में आयोजित किया गया था।
हरिमाऊ शक्ति: Facts in Brief
- भारत-मलेशिया के बीच का संयुक्त सैन्य अभ्यास है
- मलेशिया के पहांग जिले के बेंटोंग कैंप में शुरू हुआ
- भारत और मलेशिया में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है
- नवंबर 2023 में भारत के मेघालय में उमरोई छावनी में आयोजित किया गया था
रॉयल मलेशियाई रेजिमेंट के द्वारा 123 कर्मियों वाली मलेशियाई टुकड़ी का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है । संयुक्त अभ्यास हरिमाऊ शक्ति एक वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो भारत और मलेशिया में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। पिछला संस्करण नवंबर 2023 में भारत के मेघालय में उमरोई छावनी में आयोजित किया गया था।
संयुक्त अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र अधिदेश के अध्याय VII के तहत जंगल क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने के लिए दोनों पक्षों की संयुक्त सैन्य क्षमता को बढ़ाना है। यह अभ्यास जंगल के वातावरण में अभियानों पर केंद्रित होगा।
अभ्यास दो चरणों में आयोजित किया जाएगा। पहले चरण में दोनों सेनाओं के बीच क्रॉस ट्रेनिंग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसमें व्याख्यान, प्रदर्शन और जंगल के इलाकों में विभिन्न अभ्यास शामिल हैं। अंतिम चरण में दोनों सेनाएं एक मॉक अभ्यास में सक्रिय रूप से भाग लेंगी, जिसमें सैनिक एंटी-एमटी एंबुश, बंदरगाह पर कब्जा, टोही गश्त, एंबुश और आतंकवादियों द्वारा कब्जा किए गए क्षेत्र पर हमला सहित विभिन्न अभ्यास करेंगे।
हरिमाऊ शक्ति अभ्यास से दोनों पक्षों को संयुक्त अभियान चलाने की रणनीति, तकनीक और प्रक्रियाओं में सर्वोत्तम अभ्यास साझा करने का अवसर मिलेगा। इससे दोनों सेनाओं के बीच अंतर-संचालन और सौहार्द विकसित करने में मदद मिलेगी। संयुक्त अभ्यास से रक्षा सहयोग भी बढ़ेगा, जिससे दोनों मित्र देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में और वृद्धि होगी।
जानें कौन बन सकता है-पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी-पर्यटन मंत्रालय की खास पहल
केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय ने पर्यटन मित्र/पर्यटन दीदी के नाम से एक राष्ट्रीय जिम्मेदार पर्यटन पहल शुरू की थी। इस पहल के माध्यम से, पर्यटन मंत्रालय का लक्ष्य गंतव्यों में पर्यटकों के लिए समग्र अनुभव को बेहतर बनाना है, ताकि उन्हें 'पर्यटक-अनुकूल' लोगों से मिलवाया जा सके। साथ ही ये ऐसे लोग और व्यक्ति हैं जो उस गंतव्य पर गर्व करने वाले राजदूत और कहानीकार हैं।
प्रारंभ मे यह पहल पूरे भारत के 6 पर्यटन स्थलों - ओरछा (मध्य प्रदेश), गांदीकोटा (आंध्र प्रदेश), बोधगया (बिहार), आइजोल (मिजोरम), जोधपुर (राजस्थान) और श्री विजया पुरम (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) में शुरू की गई थी।
इस पहल के माध्यम से, पर्यटन मंत्रालय का लक्ष्य गंतव्यों में पर्यटकों के लिए समग्र अनुभव को बेहतर बनाना है, ताकि उन्हें 'पर्यटक-अनुकूल' लोगों से मिलवाया जा सके जो उस गंतव्य पर गर्व करने वाले राजदूत और कहानीकार हैं। यह उन सभी लोगों को पर्यटन संबंधी प्रशिक्षण और जागरूकता प्रदान करके किया जा रहा है जो किसी गंतव्य पर पर्यटकों के साथ बातचीत करते हैं और जुड़ाव रखते हैं।
'अतिथि देवो भव' से प्रेरित होने वालों में कैब ड्राइवर, ऑटो चालक, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, बस स्टेशन के कर्मचारी, होटल कर्मचारी, रेस्तरां कर्मचारी, होमस्टे मालिक, टूर गाइड, पुलिस कर्मी, सड़क विक्रेता, दुकानदार, छात्र और कई अन्य लोग शामिल थे, जिन्हें पर्यटन के महत्व, सामान्य स्वच्छता, सुरक्षा, स्थिरता और पर्यटकों को आतिथ्य और देखभाल के उच्चतम मानक प्रदान करने के महत्व पर प्रशिक्षण और जागरूकता प्रदान की गई।
इस वर्ष 15 अगस्त को इस कार्यक्रम की शुरूआत के बाद से, इस पहल के अंतर्गत 3,500 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया है।
विश्व पर्यटन दिवस 2024 पर, पर्यटन मंत्रालय ने देश के 50 पर्यटन स्थलों पर पर्यटन मित्र और पर्यटन दीदी का विस्तार किया। (श्रोत-पीआईबी )
पाएं राज्यवार देश में संरक्षित स्मारक/क्षेत्रों की सूची: यू पी में सबसे अधिक 743 स्मारक
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर, जो 2013 में बादल फटने के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था, का एएसआई द्वारा नवीकरण कर दिया गया है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) राष्ट्रीय महत्व के घोषित इन स्मारकों और स्थलों का रखरखाव उनकी आवश्यकता के आधार पर करता है, ताकि उन्हें उनकी मौलिकता में संरक्षित किया जा सके और उन्हें भावी पीढ़ियों को सौंपा जा सके।
राज्यवार प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्व स्थलों एवं अवशेषों का विवरण यहाँ आप प्राप्त कर सकते हैं।
राज्य | संरक्षित स्मारक/ क्षेत्र |
आंध्र प्रदेश | 135 |
अरुणाचल प्रदेश | 3 |
असम | 55 |
बिहार | 70 |
छत्तीसगढ | 46 |
दमन एवं दीव (यूटी) | 11 |
गोवा | 21 |
गुजरात | 205 |
हरियाणा | 91 |
हिमाचल प्रदेश | 40 |
जम्मू एवं कश्मीर (यूटी) | 56 |
झारखंड | 13 |
कर्नाटक | 506 |
केरल | 29 |
लद्दाख (यूटी) | 15 |
मध्य प्रदेश | 291 |
महाराष्ट्र | 286 |
मणिपुर | 1 |
मेघालय | 8 |
मिजोरम | 1 |
नागालैंड | 4 |
एन.सी.टी. दिल्ली | 173 |
ओडिशा | 81 |
पुडुचेरी (यूटी) | 7 |
पंजाब | 33 |
राजस्थान | 163 |
सिक्किम | 3 |
तेलंगाना | 8 |
तमिलनाडु | 412 |
त्रिपुरा | 8 |
उत्तर प्रदेश | 743 |
उत्तराखंड | 44 |
पश्चिम बंगाल | 135 |
कुल | 3697 |