इस वर्ष अर्थात 2024 में जन्माष्टमी अगस्त 26 को मनाई जाएगी।
आप यहाँ देख सकते हैं आने वाले 2030 तक जन्माष्टमी को मनाई जाने वाली तिथियाँ-
2025 शुक्रवार, 15 अगस्त
2026 शुक्रवार, 4 सितंबर
2027 बुधवार, 25 अगस्त
2028 रविवार, 13 अगस्त
2029 शनिवार, 1 सितंबर
2030 बुधवार, 21 अगस्त
'जन्म' का अर्थ है जन्म
और 'अष्टमी' का अर्थ है
आठवां। भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे, जिसमें उनका जन्म आठवीं तिथि को वासुदेव और
यशोदा के आठवें पुत्र के रूप में हुआ था।
जन्माष्टमी की पूजा विधि:
प्रातःकाल स्नान: भक्तगण प्रातःकाल स्नान करके पवित्र होते
हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं।
मंदिर की सजावट: भगवान कृष्ण के मंदिर या पूजा स्थल को
फूलों, रंगोली और दीपों
से सजाया जाता है। भगवान कृष्ण की मूर्ति को नए वस्त्र, आभूषण और माला
पहनाई जाती है।
पूजन सामग्री: पूजन के लिए विशेष सामग्री जैसे पंचामृत, फल, फूल, तुलसी दल, मक्खन और मिश्री
आदि तैयार किए जाते हैं।
कलश स्थापना: पूजा स्थल पर कलश की स्थापना की जाती है और
उसमें आम के पत्ते और नारियल रखकर उसका पूजन किया जाता है।
भगवान कृष्ण का अभिषेक: भगवान कृष्ण की मूर्ति का दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से
अभिषेक किया जाता है।
कथा और भजन: भगवान कृष्ण की जन्मकथा सुनाई जाती है और उनके
भजन-कीर्तन गाए जाते हैं।
मध्यरात्रि पूजा: चूंकि भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में
हुआ था, इसलिए रात 12 बजे विशेष पूजा
और आरती की जाती है।
प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भक्तों के बीच प्रसाद बांटा जाता
है। मक्खन और मिश्री को भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन के रूप में प्रसाद में वितरित
किया जाता है।
व्रत का पारण: अगले दिन भक्तगण व्रत का पारण करते हैं और सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं।
भगवान कृष्ण की लीलाएं:
बाल लीलाएं: भगवान कृष्ण की बाल्यावस्था में की गई लीलाएं, जैसे कि माखन
चुराना, गोपियों के साथ
रासलीला, कालिया नाग का वध, गोवर्धन पर्वत
उठाना आदि, अत्यंत प्रसिद्ध
हैं।
रासलीला: भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ की गई रासलीला उनकी
प्रेम और भक्ति की भावना को प्रदर्शित करती है। यह लीला भगवान के प्रेममय स्वरूप
का प्रतीक है।
कृष्ण-अर्जुन संवाद: महाभारत में अर्जुन को श्रीकृष्ण
द्वारा दिया गया ज्ञान, जो ‘भगवद्गीता’ के रूप में
संकलित है, अत्यंत
महत्वपूर्ण लीला है। इसमें जीवन के मूलभूत सिद्धांतों और धर्म के मार्ग का उपदेश
दिया गया है।
भगवान कृष्ण की शिक्षाएं:
कर्मयोग: भगवान कृष्ण ने गीता में कर्मयोग का उपदेश दिया, जिसमें बिना किसी
फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करने की बात कही गई है।
भक्ति योग: कृष्ण भक्ति को सर्वोच्च मानते हैं और प्रेम के
माध्यम से भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं।
धर्म और अधर्म का ज्ञान: श्रीकृष्ण ने धर्म और अधर्म के बीच
के भेद को स्पष्ट किया और सदा धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
सर्वधर्म समभाव: कृष्ण ने सभी धर्मों को समान रूप से
मान्यता देने की बात कही और कहा कि सभी मार्ग अंततः एक ही ईश्वर तक पहुंचते हैं।
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