Cyclone Fengal: ताजा अपडेट के अनुसार चक्रवात फेंगल ने तूफ़ान का रूप ले लिया है, जिससे भारी बारिश और तेज़ हवाएं चल रही हैं. तमिलनाडु के कुछ जिलों और पुडुचेरी के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, फेंगल चक्रवात बंगाल की खाड़ी में तेजी से विकसित हो रहा है जिसके कारण से तमिलनाडु और पुडुचेरी में भारी बारिश और तेज हवाओं की संभावना हो सकती है।
चक्रवात फेंगल (Cyclone Fengal) का दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी में एक गहरे दबाव के रूप में शुरुआत हुआ था और धीरे-धीरे उत्तर-उत्तर-पश्चिम में तमिलनाडु तट की ओर बढ़ रहा था। ऐसी संभावना थी कि यह
चक्रवात फेंगल (Cyclone Fengal) के तमिलनाडु-पुडुचेरी तट पर कराईकल और महाबलीपुरम के बीच कहीं टकरा सकती है। मौसम विभाग के अनुसार चक्रवात फेंगल (Cyclone Fengal) के कारण तटीय आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के जिलों में वर्षा हो रही है।
किस देश ने सुझाया चक्रवाती तूफान का नाम फेंगल?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) और एशिया और प्रशांत के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ईएससीएपी) द्वारा स्थापित नामकरण सम्मेलनों के तहत चक्रवात फेंगल का नाम सऊदी अरब द्वारा दिया गया था। इस प्रणाली का उद्देश्य तूफान की घटनाओं के दौरान सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना और संचार को सुव्यवस्थित करना है।
क्या होता है साइक्लोन?
साइक्लोन एक प्रकार की तीव्र वायुवीय प्रणाली होती है जिसमें हवा बहुत तेज गति से घूमती है और यह केंद्र की ओर खिंचती है। यह वायुमंडल में कम दबाव वाले क्षेत्र के कारण होता है। वास्तव में चक्रवात यानी साइक्लोन शब्द ग्रीक भाषा साइक्लोस से लिया गया है जिसका अर्थ ‘सांप की कुंडली’ होता है। साइक्लोन के बनने में साइक्लोजेनेसिस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात गर्म महासागरों के ऊपर बनता है जो कम वायुमंडलीय दाब के कारण बनता है और तेज हवा का रूप ले लेता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर के ऊपर बनते हैं।
साइक्लोन के नामकरण के पीछे का क्या होता है कारण?
क्या आप जानते हैं कि किसी भी साइक्लोन का नामकरण साल 2004 के एक अंतर्राष्ट्रीय
समझौते के तहत किया जाता है। विभिन्न
क्षेत्रों में स्थित देशों के द्वारा विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की देखरेख में इन तूफ़ानों को नाम प्रदान किया जाता है।
सूत्रों के अनुसार हिन्द महासागर क्षेत्र
में आने वाले तूफ़ानों के नाम रखने के लिए सितंबर 2004 में एक समझौता हुआ। इस
समझौते के तहत हिन्द महासागर क्षेत्र के आठ देश, बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्याँमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और
थाईलैंड तूफ़ानों के लिए नामों का एक समूह देंगे, जिसमें से बारी-बारी से तूफान का नामकरण होगा।
हालाँकि, अब इस समझौते में देशों की संख्या बढ़कर 13 हो गई है। आमतौर पर सदस्य देशों की भाषाओं और संस्कृतियों से प्रेरित होते हैं, और उनका उद्देश्य आसानी से याद रखे जाने वाले और उच्चारण में सरल नाम देना होता है। इस चक्रवाती तूफान का नाम रेमल है. 'रेमल' एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है 'रेत'. यह नाम ओमान का दिया हुआ है.
साइक्लोन का निर्माण
साइक्लोन का निर्माण जटिल प्रक्रियाओं का परिणाम है जिसमें वातावरण के कई तत्व शामिल होते हैं। साइक्लोन का निर्माण आमतौर पर गर्म समुद्री सतहों के ऊपर होता है, जहाँ समुद्र का तापमान 26.5°C या उससे अधिक होता है। गर्म पानी हवा को गर्म करता है, जिससे वह हल्की होकर ऊपर उठती है। जैसे ही गर्म हवा ऊपर उठती है, सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह कम दबाव वाला क्षेत्र आसपास की ठंडी हवा को खींचता है, जिससे हवा की गति तेज हो जाती है।
साइक्लोन बनने के लिए कुछ महत्वपूर्ण स्थितियां आवश्यक होती हैं:
गर्म समुद्री सतह:
साइक्लोन का निर्माण आमतौर पर गर्म समुद्री सतहों के ऊपर होता है, जहाँ समुद्र का तापमान 26.5°C या उससे अधिक होता है। गर्म पानी हवा को गर्म करता है, जिससे वह हल्की होकर ऊपर उठती है।
कम दबाव का क्षेत्र:
जैसे ही गर्म हवा ऊपर उठती है, सतह पर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह कम दबाव वाला क्षेत्र आसपास की ठंडी हवा को खींचता है, जिससे हवा की गति तेज हो जाती है।
वाष्पीकरण और संघनन:
जब गर्म हवा ऊपर उठती है, तो इसमें मौजूद नमी वाष्पित होती है। ऊँचाई पर पहुँचकर यह नमी संघनित होती है और बादलों का निर्माण करती है। इस प्रक्रिया में ऊष्मा मुक्त होती है, जो हवा को और भी अधिक गर्म करके उसे और तेजी से ऊपर उठाती है।
कैरिओलिस बल:
पृथ्वी के घूमने के कारण हवा की दिशा में एक घूर्णन बल उत्पन्न होता है, जिसे कैरिओलिस बल कहते हैं। यह बल हवा को एक सर्पिल (spiral) आकार में घुमाने में मदद करता है, जिससे साइक्लोन का घूर्णन प्रारंभ होता है।
वायु का चक्रवातीय प्रवाह:
हवा का चक्रवातीय प्रवाह साइक्लोन के केंद्र की ओर होता है, जिससे हवा का दबाव और भी कम हो जाता है। इस प्रक्रिया में, हवा तेजी से घूमने लगती है और साइक्लोन का केंद्र (आँख) स्पष्ट होता है, जहाँ हवा का दबाव सबसे कम होता है।
ऊपरी वायुमंडलीय प्रवाह:
साइक्लोन के शीर्ष पर हवा का बहिर्गमन (outflow) होता है, जिससे निचले स्तर पर हवा के आगमन (inflow) को बनाए रखने में मदद मिलती है। यह प्रवाह साइक्लोन को ऊर्जा प्रदान करता रहता है।
साइक्लोन के प्रकार
साइक्लोन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
1. ट्रॉपिकल साइक्लोन: ये साइक्लोन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बनते हैं, जैसे कि हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और कैरिबियन सागर। ये साइक्लोन बहुत तीव्र होते हैं और इनमें भारी वर्षा और तेज हवाएँ होती हैं। ट्रॉपिकल साइक्लोन को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे कि:
• हुर्रिकेन: उत्तरी अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत महासागर में।
• टाइफून: पश्चिमी प्रशांत महासागर में।
• साइक्लोन: भारतीय महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर में।
2. एक्स्ट्रा-ट्रॉपिकल साइक्लोन: ये साइक्लोन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के बाहर बनते हैं और आमतौर पर ठंडे या समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनका निर्माण वायुमंडल के उच्च और निम्न दबाव क्षेत्रों के परस्पर क्रिया से होता है। ये साइक्लोन आमतौर पर कम तीव्र होते हैं लेकिन फिर भी भारी वर्षा और तेज हवाएं ला सकते हैं।