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जानें क्या है KTB जिसका चर्चा प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात मे किया है


बच्चों की पसंदीदा animation series और उसका नाम है KTB – भारत हैं हम। KTB यानी कृष, तृष और बाल्टीबॉय. आपको शायद पता होगा कि ये बच्चों की पसंदीदा animation series है और इसका नाम है KTB– भारत हैं हम.

अब इसका दूसरा season भी आ गया है। ये तीन animation character हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन नायक-नायिकाओं के बारे में बताते हैं जिनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती। हाल ही में इसका season-2 बड़े ही खास अंदाज में Iinternational Film Festival of India, Goa में launch हुआ। सबसे शानदार बात ये है कि ये series न सिर्फ भारत की कई भाषाओं में बल्कि विदेशी भाषाओं में भी प्रसारित होती है। इसे दूरदर्शन के साथ-साथ अन्य OTT platform पर भी देखा जा सकता है।

यह एनिमेटेड सीरीज़ दो सीज़न की है, जिसका निर्माण केंद्रीय संचार ब्यूरो, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और ग्राफिटी स्टूडियो ने किया है। 

इस सीरीज़ में  1500 के दशक से लेकर 1947 तक के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ हैं। इस सीरीज़ को प्रतिष्ठित एनिमेटेड किरदार कृष, त्रिश और बाल्टी बॉय होस्ट कर रहे हैं। इस सीरीज़ को ग्राफिटी स्टूडियो के मुंजाल श्रॉफ और तिलकराज शेट्टी की क्रिएटर जोड़ी ने बनाया है।

यह श्रृंखला युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में कम ज्ञात लेकिन महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लोगों के बारे में शिक्षित करने का एक प्रयास है, जिन्हें अतीत की शिक्षा प्रणाली द्वारा भुला दिया गया था, और जिनका पर्याप्त उल्लेख नहीं किया गया है। इस सीरीज़ का एक प्रमुख केंद्र बिंदु विदेशी उपनिवेशवादियों के खिलाफ़ संघर्ष में महिलाओं और आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भारत के बच्चों के बीच हमारे गौरवशाली स्वतंत्रता संग्राम और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले असंख्य नायकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक अभियान शुरू करने का निर्णय लिया।

प्रत्येक एपिसोड में लोकप्रिय पात्र कृष, ट्रिश और बाल्टीबॉय होंगे - जो पहले प्रशंसित केटीबी मूवी श्रृंखला से प्रसिद्ध थे, और उनके संवाद इन गुमनाम नायकों की कहानियों पर आधारित होंगे।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की विविधता को समेटते हुए, यह श्रृंखला विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा करेगी, जिसमें हिमाचल प्रदेश, बंगाल, पंजाब, केरल और अन्य जगहों से आए स्वतंत्रता सेनानियों को दिखाया जाएगा। केंद्रीय संचार ब्यूरो और ग्राफिटी स्टूडियो द्वारा निर्मित यह श्रृंखला धार्मिक बाधाओं को पार करते हुए आस्था और एकता की एक ऐसी कहानी है जो देश की आस्थाओं और विश्वासों को एक करती है।

रानी अब्बक्का, तिलका मांझी, तिरोत सिंह, पीर अली, तात्या टोपे, कोतवाल धन सिंह, कुंवर सिंह (80 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी), रानी चेन्नम्मा, टिकेन्द्र जीत सिंह आदि जैसे अनगिनत वीर व्यक्तित्व अंततः इस एनिमेटेड उत्कृष्ट कृति के माध्यम से इतिहास में अपना उचित स्थान लेंगे।

यह श्रृंखला निम्नलिखित 12 भाषाओं में निर्मित  है :

Hindi (Master), Tamil, Telugu, Kannada, Malayalam, Marathi, Gujarati, Punjabi, Bengali, Assamese, Odia and English.

श्रृंखला को निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में भी डब किया जाएगा :

फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी, अरबी, चीनी, जापानी और कोरियाई।


एक उन्मुक्त पक्षी की तरह उड़ो, लेकिन हमेशा अपने नीड़ में लौट आओ: तमिल सुपरस्टार शिवकार्तिकेयन


तमिल सुपरस्टार शिवकार्तिकेयन आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। मिमिक्री से अपने करियर शुरुआत से लेकर तमिल सिनेमा के सबसे चमकते सितारों में से एक बनने तक की यात्रा, धैर्य, जुनून और दृढ़ता की कहानी है। 55वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में बोलते हुए उन्होंने अभिनेता और राजनीतिज्ञ खुशबू सुंदर के साथ बातचीत की जिसमें उन्होंने अपने जीवन, करियर और प्रेरणाओं के बारे में बताया। 

मिमिक्री कलाकार से लेकर टेलीविज़न पर मेजबानी करने और आखिरकार तमिल सिनेमा के सबसे मशहूर अभिनेताओं में से एक शिवकार्तिकेयन ने कई भूमिकाएँ निभाई हैं। उन्होंने पार्श्व गायक, गीतकार और निर्माता के रूप में भी प्रशंसा अर्जित की है।

शिवकार्तिकेयन ने कहा, "शुरू से ही सिनेमा हमेशा मेरा जुनून रहा है और मैं हमेशा दर्शकों का मनोरंजन करना चाहता था।" "इसलिए, मैंने टेलीविज़न एंकरिंग से शुरुआत की, जिसने मुझे मनोरंजन के क्षेत्र में अपना करियर बनाने का मौका दिया और इसे मैंने पूरे जुनून के साथ अपनाया।"

मिमिक्री कलाकार के रूप में करियर की  शुरुआत 

एक मिमिक्री कलाकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए शिवकार्तिकेयन ने याद किया, "मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने प्रोफेसरों की नकल करता था। बाद में, जब मैंने उनसे माफ़ी मांगी तो उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और कहा कि इस प्रतिभा को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए।"

 पिता का असामयिक निधन

अभिनेता ने बताया किया कि उनके पिता का असामयिक निधन उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। "मेरे पिता के निधन के बाद मैं लगभग अवसाद में चला गया था। मेरे काम ने मुझे इस अवसाद से बाहर निकाला और मेरे दर्शकों की सीटियाँ और तालियाँ मेरी थेरेपी बन गईं,” उन्होंने अपने प्रशंसकों के प्यार और समर्थन को इसका श्रेय दिया।

जुनून है जरूरी 

शिवकार्तिकेयन ने कहा, “मुझे हमेशा से लाखों लोगों के बीच अलग दिखने की इच्छा रही है, जबकि मैं अब भी आम आदमी से जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ। जीवन बाधाओं से भरा है, लेकिन अपने जुनून से उन्हें दूर करने में मदद मिलती है। एक समय ऐसा भी था जब मुझे लगा कि हार मान लेनी चाहिए लेकिन मेरे दर्शकों के प्यार ने मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।”

युवा पीढ़ी के लिए

उन्होंने युवा पीढ़ी के लिए कहा कि  "एक उन्मुक्त पक्षी की तरह उड़ो, लेकिन हमेशा अपने नीड़ में लौट आओ। मेरे लिए, मेरा परिवार मेरा नीड़ है और मेरा मानना ​​है कि जड़ों से जुड़े रहना बहुत ज़रूरी है। हमारे माता-पिता हमारे लिए केवल सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं।”  (Source  PIB)

स्नो फ्लावर: दो देशों की संस्कृति, परिवार और पहचान की कहानी


मराठी भाषा की यह फिल्म दो देशों के बीच की एक मार्मिक कहानी है जो दो अलग-अलग संस्कृतियों - रूस और कोंकण को ​​जोड़ती है। बर्फीले साइबेरिया और हरे-भरे कोंकण की विपरीत पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म भारत में रहने वाली दादी और रूस में रहने वाली पोती के बीच की ‘दूरी’ को दर्शाती है। ‘स्नो फ्लावर’ पूरे भारत के सिनेमाघरों में नवम्बर 2024 में रिलीज होगी।

निर्देशक गजेंद्र विट्ठल अहिरे ने स्नो फ्लावर के पीछे की रचनात्मक प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी साझा की। अहिरे ने इन खराब परिस्थितियों में फिल्मांकन की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। साइबेरिया के खांटी-मानसिस्क में तापमान -14 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाने के कारण, छोटे दल को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ा। इन चुनौतियों के बावजूद, दल के समर्पण और मजबूत टीमवर्क ने उन्हें एक ऐसी फिल्म बनाने की अनुमति दी जो कहानी की भावनात्मक गहराई को पकड़ती है।

कोंकण के शानदार समुद्र तट से लेकर साइबेरिया के बर्फ से ढके ठंडे परिदृश्यों तक, फिल्म में एक ऐसा विरोधाभासी दृश्य प्रस्तुत किया गया है जो पात्रों की भावनात्मक उथल-पुथल को दर्शाता है।

 कहानी

स्नो फ्लावर की कहानी एक युवा लड़की परी की भावनात्मक यात्रा पर आधारित है, जो खुद को दो अलग-अलग दुनियाओं के बीच फंसी हुई पाती है।

 कहानी दो देशों में सामने आती है: भारत के कोंकण में, सपने देखने वाले एक युवा बबल्या, की रूस जाकर दशावतार थिएटर समूह में शामिल होने की प्रबल इच्‍छा होती है, जिसके कारण उसके अपने माता-पिता, दिग्या और नंदा के साथ  रिश्ते खराब हो जाते हैं। रूस में, बबल्या जीवन बनाता है, शादी करता है, और उसकी एक बेटी, परी होती है। 

हालाँकि, उस वक्‍त त्रासदी हो जाती है जब पब में झगड़े के दौरान बबल्या की मौत हो जाती है, और उसके माता-पिता अनाथ परी को वापस कोंकण लाने के लिए रूस जाते हैं। 

उनके प्यार और उसे पालने के प्रयासों के बावजूद, उन्हें जल्द ही अहसास होता है कि लड़की की असली जगह रूस में है, जहाँ उसे पूर्णता और खुशी मिल सकती है। एक पीड़ादायक फैसला लेकर, लड़की और उसकी मातृभूमि के बीच गहरे संबंध को स्वीकार करते हुए नंदा परी को रूस वापस भेज देती है। (Source PIB)

53वां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव जानें खास बातें

53rd IFFI 2022 Facts in Brief

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, यानी इफ्फी के 53वें संस्करण का आयोजन 20 से 28 नवंबर, 2022 को गोवा में किया जाएगा। ये वार्षिक फिल्म महोत्सव कला, फिल्मों और संस्कृति की एकजुट ऊर्जा और भावना को संजोते हुए इन क्षेत्रों के बड़े बड़े दिग्गजों को एक ही छत के नीचे साथ लाता है। इस साल 79 देशों की 280 फिल्में यहां दिखाई जाएंगी। भारत की 25 फीचर फिल्मों और 20 गैर-फीचर फिल्मों को 'इंडियन पैनोरमा' में दिखाया जाएगा, जबकि 183 फिल्में अंतरराष्ट्रीय प्रोग्रामिंग का हिस्सा होंगी।

53rd IFFI 2022: Facts In Brief

  1. सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार स्पेनिश फिल्म निर्देशक कार्लोस सौरा को दिया जाएगा
  2. फ्रांस इस बार 'स्पॉटलाइट' वाला देश है और कंट्री फोकस पैकेज के तहत इसकी 8 फिल्मों की स्क्रीनिंग की जाएगी
  3. डीटर बर्नर द्वारा निर्देशित ऑस्ट्रियाई फिल्म 'एल्मा एंड ऑस्कर' इस सालाना महोत्सव की शुरुआत करेगी, वहीं क्रिस्टॉफ ज़ानुसी की 'परफेक्ट नंबर' क्लोज़िंग फिल्म होगी
  4. इस साल इफ्फी और फिल्म बाजार में कई नई पहल दिखाई देंगी
  5. पूरे गोवा में कैरावैन तैनात की जाएंगी और फिल्में दिखाई जाएंगी
  6. ओपन एयर बीच स्क्रीनिंग भी की जाएंगी
  7. एनएफएआई की फिल्मों को 'इंडियन रिस्टोर्ड क्लासिक्स' सेक्शन में प्रदर्शित किया जाएगा
  8. इस साल की दादासाहेब फाल्के पुरस्कार विजेता आशा पारेख की तीन फिल्में - तीसरी मंजिल, दो बदन और कटी पतंग, 'आशा पारेख रेट्रोस्पैक्टिव' के हिस्से के रूप में दिखाई जाएंगी
  9. 'होमेज' सेक्शन में 15 भारतीय और 5 अंतर्राष्ट्रीय फिल्में शामिल होंगी
  10. पूर्वोत्तर भारत की फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए, 5 फीचर और 5 गैर-फीचर फिल्में मणिपुरी सिनेमा की स्वर्ण जयंती मनाएंगी
  11. अन्य विशेष आकर्षणों में 26 नवंबर को होने वाला शिग्मोत्सव (वसंत महोत्सव) और 27 नवंबर, 2022 को होने वाला गोवा कार्निवल शामिल हैं
  12. आजादी का अमृत महोत्सव की थीम पर सीबीसी प्रदर्शनी का आयोजन करेगी

प्रसून जोशी ने क्या कहा बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड के बारे में

बॉलीवुड के फेमस लेखक, गीतकार और सीबीएफसी के चेयरपर्सन प्रसून जोशी ने बताया की आखिर क्यों नहीं नहीं चल रहीं बॉलीवुड फिल्में और  बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड की क्या वजह है. उन्होंने  कहा कि फिल्म इंडस्ट्री को आत्ममंथन की जरूरत है.  साहित्य आजतक 2022 के मंच पर  बॉलीवुड के फेमस लेखक, गीतकार और सीबीएफसी के चेयरपर्सन प्रसून जोशी ने शिरकत की. प्रसून हमेशा अपनी उपस्थिति से हर बार साहित्य आजतक के मंच को और रोशन करते हैं. इस बार उन्होंने बॉलीवुड की फिल्मों के ना चलाने और बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड समेत कई चीजों के बारे में बात की.  

प्रसून जोशी से पूछा गया कि बॉलीवुड की फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं? क्या क्रिएटिवटी की धारा सूख गई है? इसपर वो कहते हैं- फिल्म इंडस्ट्री को आत्ममंथन की जरूरत है. बॉलीवुड को जीवित जड़ों के साथ उगना होगा. उन्हें समझना होगा कि उनकी जड़ें कहां हैं? बहुत जरूरी है फिल्ममेकर्स का अपनी फिल्म के विषय को दूरदर्शिता के हिसाब से चुनना.  

क्यों नहीं चल रहीं बॉलीवुड की फिल्में?  

प्रसून जोशी से पूछा गया कि बॉलीवुड की फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं? क्या क्रिएटिवटी की धारा सूख गई है? इसपर वो कहते हैं- फिल्म इंडस्ट्री को आत्ममंथन की जरूरत है. मैंने पहले भी कहा है कि शुरुआत में जब फिल्में बनना शुरू हुई थी, तब उनके पास अडवांटेज था. उन्हें ऑथेंनिक स्टोरी मिल रही थी.  वो कहां से आ रही थी? पौराणिक कहानियों से, रबिन्द्रनाथ और चट्टोपाध्याय से, इन सभी से कहानियां आ रही थीं. वो हमारी संस्कृति से जुड़ी कहानियां थीं. लेकिन कहीं ना कहीं हमारी फिल्म इंडस्ट्री जड़ों से दूर एक बबल में सीमित हो गई. आप अगर जड़ों से जुड़े नहीं होंगे तो आम आदमी का सत्य आपके काम में नहीं होगा. 

प्रसून आगे बताते हैं- कई फिल्मकारों से मेरी बात हुई है, जिन्होंने कहा कि हमने जिंदगी में कभी किसान नहीं देखा. लेकिन उन्होंने फिल्म में किसान दिखाए हैं. मैं कहूंगा कि ऐसे तो वो फैन्सी ड्रेस वाला किसान हो सकता है लेकिन जमीन से निकला किसान नहीं हो सकता. आगे उन्होंने अपनी कविता की पंक्तियां सुनाते हुए कहा - जड़ों से कटे पेड़ नहीं होते वो गुब्बारे होते हैं, पेड़ होने के लिए बीज, उर्वर धरती और हवा की जरूरत है. पेड़ साधना है और गुबारे कामना. बॉलीवुड को जीवित जड़ों के साथ उगना होगा. उन्हें समझना होगा कि उनकी जड़ें कहां हैं?  मैं मानता हूं कि बॉलीवुड में अच्छी सोच वाले लोग अभी भी हैं, जो साथ में बैठेंगे तो कोई ना कोई सोल्यूशन जरूर निकाल लेंगे. इस युग में आलोचना और विरोधाभास को समझना और उससे सीखकर आगे बढ़ना जरूरी है. मुझे लगता है कि वो प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और हम आगे उज्ज्वल भविष्य देखेंगे.  

 बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड पर बोले प्रसून  

बॉयकॉट बॉलीवुड पर प्रसून जोशी ने कहा, 'एक स्वाभिवक प्रक्रिया होती है, विचार आपस में टकराते हैं. अगर वो सहजता से हो रहा है तो विचार मंथन के लिए वो जरूरी भी है. ताकि हम समझ पाएं कि कहा हमें जाना है...' 

 खो चुकी है बॉलीवुड की क्रेडिबिलिटी...  

 आज के समय में माना जा रहा है कि बॉलीवुड अपनी क्रेडिबिलिटी खो रहा है. इस बारे में प्रसून जोशी से उनके विचार पूछे गए तो उन्होंने कहा, 'फिल्मों के रोल मे पहले बहुत फर्क था. शुक्रवार को फिल्में देखने का इंतजार लोग करते थे. लोगों के पास ऑप्शन बहुत थे. पहले मां फोन करती थी कि घर में अच्छा खाना बना है जल्दी घर आ जा. वो जल्दी आता और एन्जॉय करता था. लेकिन आज के समय में आदमी को शाम तक आते-आते बदहजमी हो चुकी होती है.  

 उन्होंने आगे कहा- आज के समय में उसने घर पहुंचते हुए बहुत कुछ छोटी-छोटी चीजें सोशल मीडिया पर देख ली होती है. सोशल मीडिया पर देखने के लिए बहुत कुछ है तो वो सिनेमा में फिल्म देखने के लिए तरस नहीं रहा है. पहले आपका स्टार के साथ रिश्ता अलग था. आप सोचते थे कि वो इंसान कैसा होगा? अब ऐसा नहीं है. आज आप उसे देख सकते हैं और पॉज भी कर सकते हैं. तो चीजें अब बदल चुकी हैं. बहुत जरूरी है फिल्ममेकर्स का अपनी फिल्म के विषय को दूरदर्शिता के हिसाब से चुनना.   

 क्यों आसान भाषा का नहीं करते इस्तेमाल?  

 प्रसून से पूछा गया कि वो कठिन और शुद्ध हिंदी भाषा का इस्तेमाल अपनी लेखनी में करते हैं और उसे उन्होंने अपने काम में भी रखा है. जबकि कई दूसरे लेखक हैं जो आसान भाषा का इस्तेमाल करते हैं. तो क्या आपको ऐसा करने का मन नहीं करता. इसपर उन्होंने कहा कि चाट का ठेला कितना भी अच्छा हो, लेकिन घर के खाने की बात ही कुछ और है. प्रसून मानते हैं कि कोई भी भाषा इसमें सक्षम नहीं है कि मनुष्य के दिल में जो उमड़ रहा है, उसे वो किसी के सामने रख सके. तभी बॉडी लैंग्वेज की बात होती है. उन्होंने कोरोना के दौरान मास्क लगाने और आंखों से बातें करने का उदाहरण भी दिया. उन्होंने इसके लिए 'सीखो ना नैनों की भाषा' गाना गाया.   

53वां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव: देखें ये विदेशी हॉरर फिल्मे जो रोमांच से भर देंगी- नाइट सायरन (स्लोवाकिया), हुइसेरा (पेरू), वीनस (स्पेन),हैचिंग (फिनलैंड)

भयावह फिल्मी विधा की लोकप्रियता के आधार पर, 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) ‘मैकेबर ड्रीम्स’ की पेशकश कर रहा है। पणजी, गोवा में 20 नवंबर से 28 नवंबर, 2022 तक चलने वाले 53वें इफ्फी में एक हॉरर फिल्मों का आनन्द उठाने का सुनहरा मौका आपके पास है. जहाँ आप दुनिया के हॉरर फिल्मो का आनंद उठा सकते हैं जिसमे शामिल है नाइट सायरन (स्लोवाकिया), हुइसेरा (पेरू), वीनस (स्पेन),हैचिंग (फिनलैंड). 

“डर एक सार्वभौमिक भाषा है; हम सबको डर लगता है। हम जन्म से ही डरने लगते हैं, हमें हर चीज से डर लगता हैः मृत्यु, विकृति, प्रियजनों के खो जाने। हर उस चीज से जिससे मुझे डर लगता है, आप भी उससे डरते हैं; आप जिन चीजों से डरते हैं, मैं भी उनसे डरता हूं।” अमेरिकी फिल्म निर्माता जॉन कारपेंटर, जिन्हें ‘हॉरर फिल्मों का उस्ताद’ कहा जाता है, वे जब अपनी पसंदीदा फिल्म विधा की बात करते हैं, तो वे भावनात्मक रूप से तनिक भी अतिशयता से काम नहीं लेते। कहां से शुरू किया जाये? ‘ड्रैकुला’ से लेकर ‘दि एक्जॉरसिस्ट’ तक या ‘हेरेडिटरी’ से लेकर ‘द कॉन्जरिंग’ तक, सनसनी पैदा कर देने वाली इन हॉरर फिल्मों ने दुनिया भर के सिने-प्रेमियों का ध्यान खींचा है। हर देश और हर भाषा यह दावा कर सकती है कि उसके पास कम से कम दर्जन भर हॉरर फिल्में तो जरूर होंगी, जो अपने दर्शकों को रोमांच से भर देती हैं और उन्हें बेचैन कर देती हैं। हमारे भीतर के डर को कुशलता से इस्तेमाल करके, इस विधा की फिल्मों ने विश्व सिनेमा में तरह-तरह का प्रभाव डाला है और खुद के लिये स्थान बनाया है।

भयावह फिल्मी विधा की लोकप्रियता के आधार पर, 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) ‘मैकेबर ड्रीम्स’ की पेशकश कर रहा है। इस गुलदस्ते में नई रिलीज होने वाली हॉरर फिल्में रखी गई हैं, जो सिनेमा हॉल से निकलने के बाद भी आपको विचलित करती रहेंगी। पारलौकिक फिल्मों के इस विशेष पैकेज में निम्नलिखित फिल्में शामिल हैं:-

नाइट सायरन (स्लोवाकिया/2022)

Night Siren (Slovakia / 2022)
इस फिल्म का निर्देशन टेरेजा न्वोतोवा ने किया है। यह एक युवती की कहानी है, जो अपने पुश्तैनी पहाड़ी गांव में वापस आती है। वह अपने मुश्किल भरे बचपन के बारे में जानना चाहती है, सवालों के जवाब तलाशना चाहती है। लेकिन, जब वह सच्चाई खोजने की कोशिश करती है, तो पुरानी दुनिया की आहटें आधुनिक वास्तविकता में दखलंदाजी करने लगती हैं। तब गांव के लोग उस पर जादू-टोने और हत्या का आरोप लगाने लगते हैं।

यह बहुत रोमांचक और पहेलियों से भरी फिल्म है, जो सात अध्यायों में सामने आती है। इन अध्यायों के जरिये आधुनिक स्लोवाकिया में पुरानी आस्थाओं के उभरने को पेश किया गया है तथा बताया गया है कि कैसे आधुनिक समय में भी स्त्रियों के प्रति द्वेष, बाहरी लोगों के प्रति द्वेष और सामूहिक पागलपन मौजूद है।

फिल्म यह भी दर्शाती है कि जब हम घिसे-पिटे रास्ते को छोड़ देते हैं, तो मुक्त होने के लिये क्या-क्या करना पड़ता है।

हुइसेरा (पेरू/2022)

Huesera (Peru / 2022)


यह एक पारलौकिक तत्त्व की डरावनी फिल्म है, जिसका निर्देशन मैक्सिको की फिल्म निर्माता मिचेल गार्जा सरवेरा ने किया है। वे इस फिल्म की सह-लेखक भी हैं। फिल्म में नतालिया सोलियेन ने एक गर्भवती औरत वेलेरिया का किरदार निभाया है, जिसे जादू-टोने की ताकतें मुसीबत में डाल देती हैं। वेलेरिया बच्चे को जन्म देने वाली है, लेकिन वह भारी संशय में पड़ी है और उसे भय महसूस होता रहता है। उसे लगता है कि मकड़े के आकार की कोई चीज वहां मौजूद है। उसे हर तरह के पारलौकिक खतरे का एहसास होता रहता है। इन दानवों का सामना करने के लिये वह अपनी पहले की और आजादाना जिंदगी से जुड़ जाती है। उसके मन में अपने पहले प्यार ऑक्टेविया के लिये भावनायें उद्वेलित होने लगती हैं।

इस फिल्म को मैक्सिको और पेरू ने मिलकर बनाया है। इसका वर्ल्ड प्रीमियर नौ जुलाई, 2022 को ट्रिबेका फेस्टिवल में हुआ था। उसे सर्वश्रेष्ठ नवीन कथात्मक निर्देशक का और नोरा एफ्रॉन पुरस्कार भी मिले हैं।

वीनस (स्पेन/2022)

IFFI 53 Panaji Goa Venus (Spain / 2022)


यह स्पेन की पारलौकिक हॉरर फिल्म है, जिसमें शहरी वातावरण पेश किया गया है कि कैसे आधुनिक जादू-टोने के साथ बचा जाता है। फिल्म का निर्देशन यॉमे बालाग्वेरो ने किया है। यह छह भागों वाले ‘दी फियर कलेक्शन’ का दूसरा हिस्सा है। सोनी पिक्चर्स इंटरनेशनल प्रोडक्शंस और अमेजॉन प्राइम वीडियो मिलकर इसका निर्माण कर रहे हैं। पहली फिल्म अलेक्स डी ला इगलेसिया की वेनेशिया फ्रेनिया (2021) थी।

कथावस्तु अमेरिकी लेखक एच.पी. लवक्राफ्ट की हॉरर कहानी ‘द ड्रीम्स इन दी विच हाउस’ पर आधारित है। कहानी की शुरूआत एक बैले डांसर से होती है, जो उस नाइट क्लब से नशीली गोलियों से भरा एक बैग चुरा लेती है, जहां वह काम करती है। जब उसकी योजना गड़बड़ हो जाती है और बदमाशों का गिरोह उसके पीछे लग जाता है, तो वह अपनी बहन के फ्लैट में छुपने का इरादा करती है। बहरहाल, उस फ्लैट में उन बदमाशों से ज्यादा बड़ा खतरा मौजूद है। कथावस्तु और साउंडट्रैक, दोनों मिलकर बहुत डरावनी ध्वनियां पेश करते हैं। इससे इलेक्ट्रॉनिक संगीत की ताकत का भी पता चलता है। वास्तव में बालाग्वेरो ने लवक्राफ्ट की कहानी को नया मोड़, नया कलेवर दे दिया है।

हैचिंग (फिनलैंड, स्वीडर/2022)

IFFI 53 Panaji Goa Hatching (Finland, Sweden / 2022)


यह फिनलैंड की मनोवैज्ञानिक हॉरर फिल्म है, जिसका निर्देशन हन्ना बरगॉम ने किया है। इसका प्रीमियर 23 जनवरी, 2022 में सनडांस फिल्म फेस्टिवल में हुआ था। उसे जेरार्डमर इंटरनेशनल फैंटास्टिक फिल्म फेस्टिवल में ग्रां प्री और प्री दू ज्यून्स पुरस्कार मिल चुके हैं।

यह फिल्म एक युवा जिम्नास्ट टिनजा के आसपास घूमती है, जो अपनी मां को प्रभावित करने की कोशिशों में लगी रहती है। उसकी मां अपने लोकप्रिय ब्लॉग के जरिये दुनिया के सामने एक आदर्श परिवार की छवि पेश करने के पीछे पागल रहती है। एक दिन टिनजा को एक रहस्यमयी अंडा मिलता है। वह उसे घर ले आती है। जब वह पकता है, तो उसके भीतर से निकलने वाले जीव का नाम वह ‘अली’ रख देती है। वह धीरे-धीरे बड़ा होता है और उसी की छवि वाला बन जाता है। फिर वह टिनजा की दबी-कुचली भावनाओं के अनुसार काम करता है। (Source PIB)