नालंदा
विश्वविद्यालय भारत के प्राचीन मगध (आधुनिक बिहार) राज्य में एक बौद्ध महाविहार
(मठ-विश्वविद्यालय) था। यह स्थल पटना से लगभग 95 किलोमीटर (59 मील) दक्षिण-पूर्व
में बिहार शरीफ़ शहर के पास स्थित है, और पाँचवीं शताब्दी ई. से 1200 ई. तक शिक्षा का
केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
नालंदा विश्वविद्यालय वास्तव में एक अद्वितीय संस्थान था और इसका दुनिया में ज्ञान के विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह शिक्षा के महत्व और दुनिया को बदलने के लिए ज्ञान की शक्ति की याद दिलाता है।
- इसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य द्वारा की गई थी। यह दुनिया के पहले विश्वविद्यालयों में से एक था, और इसने पूरे एशिया से विद्वानों को आकर्षित किया।
- यह बौद्ध धर्म, दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा के अध्ययन का केंद्र था।
- इसमें 9 मिलियन से अधिक पुस्तकों वाला एक बड़ा पुस्तकालय था।
- इसे 1193 ई. में बख्तियार खिलजी की आक्रमणकारी सेना ने नष्ट कर दिया था।
- इसे 21वीं सदी में एक आधुनिक विश्वविद्यालय के रूप में फिर से बनाया गया।
- नालंदा विश्वविद्यालय 700 से अधिक वर्षों तक दुनिया में शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक था।
- यह एक ऐसा स्थान था जहाँ पूरे एशिया से विद्वान दर्शन, धर्म और विज्ञान के महान प्रश्नों का अध्ययन और बहस करने आते थे।
- नालंदा का विनाश दुनिया में ज्ञान के विकास के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन इसकी विरासत आज भी विद्वानों और छात्रों को प्रेरित करती है।
- विश्वविद्यालय को 8 कॉलेजों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक एक अलग विषय में विशेषज्ञता रखता था।
- नालंदा के छात्रों को बौद्ध धर्म, दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा सहित कई विषयों का अध्ययन करना पड़ता था। विश्वविद्यालय में 9 मिलियन से अधिक पुस्तकों वाला एक बड़ा पुस्तकालय था। नालंदा के शिक्षकों का बहुत सम्मान किया जाता था और वे पूरे एशिया से आते थे।
- विश्वविद्यालय संस्कृत से अन्य भाषाओं में ग्रंथों के अनुवाद का केंद्र था। नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के प्रसार का एक प्रमुख केंद्र था।
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