Point Of View : भगवान राम के जीवन से सीखें-जीवन की चुनौतियों को स्वीकार एवं सामना करने की कला

 



Point Of View राम नवमी का पावन पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाते हैं.  जो इस साल अप्रैल 17 , 2024 को मनाई जा रही है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने राम और माता लक्ष्मी ने सीता के रूप मे अवतार लिया था। जिस दिन श्रीहरि ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या की कोख से जन्म लिया था, उस दिन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी और इसलिए इस तिथि को राम नवमी के रूप में मनाई जाती है।
 इस दिन चैत्र नवरात्रि का समापन भी होगा. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुण्य तिथियों में से एक माना जाता है। भगवान राम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जाना जाता है, उनका जीवन कठिनाइयों और त्याग से भरा था। 14 वर्ष का वनवास, प्रिय पत्नी सीता का अपहरण, रावण के साथ युद्ध - इन सबके बावजूद उन्होंने धैर्य, साहस और नैतिकता का परिचय दिया। 

भगवान राम का जीवन  फूलों का सेज नहीं बल्कि काँटों का ताज था लेकिन इसके बावजूद उन्होंने जीवन के उच्च  मर्यादाओं का पालन करते है मर्यादा पुरुषोतम  राम के रूप मे पूजा किए जाते हैं। जीवन मे चुनौतियों का आना निश्चित होता है लेकिन उनके सामने नतमस्तक हो जाना कायरता है। आइए हम भगवान राम के जीवन से सीखते हैं कि कैसे इन चुनौतियों को स्वीकार कर उनका सामना किया जाए।

 1. कर्म पर विश्वास:

भगवान राम ने सदैव अपना कर्म निष्ठापूर्वक किया, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों। उन्होंने हमें सिखाया है कि कर्म का फल हमें अवश्य मिलेगा, इसलिए हमें सदैव कर्म करते रहना चाहिए। आपको याद होगा कि राज्याभिषेक से ठीक एक दिन पहले, श्री राम को 14 साल के वनवास के लिए जाने का आदेश मिला। भगवान राम ने बिना किसी शिकायत के, प्रसन्न भाव से वह जीवन को वैसे ही स्वीकार कर अपनी नई यात्रा पर निकल पड़ते हैं।

2. धैर्य और संयम:

राजमहल मे रहने वाले भगवान राम के सामने वनवास के जीवन चुनौतियों से भरी रही होंगी इसमे किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं। अपने पत्नी सीता और भरत लक्ष्मण के साथ वनवास के दौरान अनेक कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद भगवान राम ने कभी भी धैर्य और संयम नहीं खोया। वनवास के दौरान मिलने वाले विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के दौरान उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में धैर्य और संयम बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

3. साहस और दृढ़ संकल्प:

रावण के साथ युद्ध में भगवान राम ने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया। उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस और दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है।

4. सत्य और न्याय का मार्ग:

जीवन में पैदा होने वाले विपरीत परिस्थितियों के सामने भी कभी भी भगवान राम ने सत्य और न्याय का मार्ग नहीं त्याग। सत्य के मार्ग पर चलना हमेशा से काँटों के पथ पर चलने के समान होता है और भगवान राम ने हमें सिखाया है कि जीवन में सत्य और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए, चाहे इसके लिए हमें कितने भी त्याग क्यों न करने पड़ें।

5. क्षमा और करुणा:

मर्यादा पुरुषोतम राम भगवान राम क्षमा और करुणा के प्रतीक थे और उन्होंने अपने शरण मे आने वाले आगंतुकों को कभी भी मना नहीं किया। यहाँ तक कि उन्होंने रावण के भाई विभीषण को क्षमा करने मे विलंब नहीं किया। सच तो यह है कि जीवन में क्षमा और करुणा का क्या महत्व है, यह हमे भगवान राम के जीवन से सीख सकते हैं।

6. मित्रता और सेवा:

भगवान राम ने हनुमान और सुग्रीव जैसे मित्रों का साथ पाकर हमें सिखाया है कि जीवन में सच्ची मित्रता का क्या महत्व है। उन्होंने शबरी, निषादराज आदि की सेवा करके हमें सिखाया है कि दूसरों की सेवा करने से जीवन सार्थक होता है।

7. विनम्रता और सरलता:

राजकुमार होने के बावजूद भगवान राम सदैव विनम्र और सरल रहे। उन्होंने हमें सिखाया है कि जीवन में विनम्रता और सरलता का गुण अपनाना चाहिए। उन्होंने राजाओं से लेकर साधुओं और यहाँ तक कि जानवरों तक सभी के साथ समान व्यवहार किया।

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