नहाय खाय: महत्व
छठ पूजा का पहला चरण नहाय खाय होता है जिसका प्रकुख उद्देश्य होता है कि व्रती शुद्ध होकर व्रत के लिए तैयार हो जाती है। यह चरण कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है जो छठ पूजा का प्रथम चरण कहा जाता है। स्नान के बाद वे साफ कपड़े पहनते हैं। फिर वे फलाहार करते हैं। फलाहार में आमतौर पर फल, दूध, दही, आदि शामिल होते हैं। इस दिन व्रती स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं और फलाहार करते हैं। इस दिन से व्रतियों को 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
खरना: महत्व
छठ पूजा का दूसरा चरण खरना है जो सामान्य पंचांग के अनुसर कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। खरना का दिन एक महत्वपूर्ण दिन है जिसका प्रकुख उद्देध्य प्रतीत होता जो तियों को छठ पूजा के लिए तैयार करता है।खरना के दिन व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और उपवास शुरू करते हैं। खरना के भोजन में खिचड़ी, गुड़, अरवा चावल, चना, मटर, मूंग, तिल, घी, आदि शामिल होते हैं। खरना के बाद व्रती शाम तक उपवास रखते हैं। यह छठ पूजा के दूसरे दिन का पहला भोजन है जो यह व्रतियों के लिए ऊर्जा का स्रोत माना है। यह व्रतियों को उपवास के लिए तैयार करता है।
खरना के दिन प्रसाद बनाने की परंपरा भी है। प्रसाद में ठेकुआ, पंचामृत, आदि शामिल होते हैं। प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है। प्रसाद को छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
संध्या अर्घ्य : महत्व
छठ पूजा का तीसरा चरण संध्या अर्घ्य है जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है। यह छठ पूजा का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जिसके अंतर्गत व्रती और परिवार के सभी सदस्य इस दिन व्रती सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के लिए व्रती घर के पास नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। अर्घ्य में ठेकुआ, केला, अदरक, वल, गुड़, दूध, फल, आदि शामिल होते हैं जिन्हे भगवन सूर्य को अर्ध्य देने के लिए प्रयोग किया जाता है।
संध्या अर्घ्य छठ पूजा के तीसरे दिन की सबसे महत्वपूर्ण रस्म है जिसके अंतर्गत मान्यता है कि यह सूर्य भगवान को धन्यवाद देने का अवसर है। कहा जाता है कि डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की यह अनोखी प्ररम्परा है जो छठ में देखने को मिलती है. सामान्यता लोग उगते हुए सूर्य को ही देखना चाहते हैं लेकिन छठ में डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की परंपरा भी शामिल है. यह व्रतियों की प्रार्थनाओं को सूर्य भगवान तक पहुंचाने का एक तरीका है।
उषा अर्घ्य: महत्व
छठ पूजा का चौथा और अंतिम चरण उषा अर्घ्य है। यह चरण कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है। इस दिन व्रती सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। उषा अर्घ्य के दिन व्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। व्रती एक मिट्टी के बर्तन में चावल, गुड़, दूध, फल, आदि लेकर जाते हैं। व्रती सूर्य भगवान की पूजा करते हैं और उन्हें अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद व्रती फल और मिठाई खाते हैं। उषा अर्घ्य देने के लिए व्रती सूर्योदय से पहले नदी, तालाब या पोखर के किनारे जाते हैं। उषा अर्घ्य देने के बाद व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं।
No comments:
Post a Comment