मिनिस्ट्री ऑफ़ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वर्तमान संसद भवन एक औपनिवेशिक युग की इमारत है जिसे 'काउंसिल हाउस' के रूप में डिजाइन किया गया था और इसे 1927 में पूरा किया गया था। जब भारत स्वतंत्र हुआ तो इसे संसद भवन के रूप में परिवर्तित किया गया। मौजूदा भवन को पूर्णविकसित लोकतंत्र हेतु द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए कभी भी डिजाइन नहीं किया गया था।
सेंट्रल विस्टा विकास / पुनर्विकास योजना एक पीढ़ीगत बुनियादी ढांचा निवेश परियोजना है, जिसमें 6 वर्षों में फैली कई परियोजनाएं शामिल हैं।
विभिन्न संवैधानिक संशोधन अधिनियमों के अनुसार 1976 से लोकसभा की मौजूदा संख्या 552 पर स्थिर बनी हुई है। इसका मतलब है कि आज, संसद का प्रत्येक सदस्य औसतन 25 लाख नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है । यह संख्या स्वतंत्रता के समय - लगभग 5 लाख - की तुलना में और दुनिया के अन्य लोकतंत्रों की तुलना में बहुत अधिक है और भारत की बढ़ती आबादी के साथ यह भी बढ़ती रहेगी । नतीजतन, भारतीय संसद में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कई जरूरी मांगें उठी हैं। संसद सदस्य संख्या विस्तार पर पाबंदी समाप्त होने के बाद अगर 2026 में यह संख्या बढ़ जाती है तो यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि संसद भवन में कार्य करने के लिए एक व्यापक व्यवस्था हो।
वर्तमान संसद भवन विभिन्न कारणों से पहले ही अत्यधिक दबाव में है। इसके संरचना का विस्तार से अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि यदि संसद की क्षमता का विस्तार करना है, इसके बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना है , इसकी भूकंप सुरक्षा सुनिश्चित करनी है , तो नया संसद भवन आवश्यक होगा।
वर्तमान संसद भवन विभिन्न कारणों से पहले ही अत्यधिक दबाव में है:
मौजूदा लोकसभा और केन्द्रीय कक्ष अपनी पूरी क्षमता तक भरे हुए हैं और उनका और अधिक विस्तार नहीं किया जा सकता। लोकसभा में अधिकतम 552 व्यक्ति और केंद्रीय कक्ष में अधिकतम 436 व्यक्ति बैठ सकते हैं। हालांकि, संयुक्त सत्र के दौरान गलियारों में कम से कम 200 तदर्थ/अस्थायी सीटें जोड़ी जाती हैं जो कि गरिमाहीन और असुरक्षित है।
मंत्रियों के कार्यालय और बैठक कक्ष, भोजन सुविधाएं, प्रेस कक्ष इत्यादि जैसी सुविधाएं अपर्याप्त हैं, इनके लिए अस्थायी व्यवस्था की आवश्यकता होती है जो हमेशा सुविधापूर्ण या सम्मानजनक नहीं होती है।
तकनीकी प्रगति और कार्यात्मकता को बनाए रखने के लिए, पिछले कुछ वर्षों में इस इमारत में कई जुड़ाव और बदलाव किए गए हैं , जिनसे इस इमारत की संरचना को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा है।
इस भवन की विद्युत, यांत्रिक, वातानुकूलन, प्रकाश व्यवस्था, दृश्य-श्रव्य, ध्वनिक, सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली और सुरक्षा अवसंरचना बिल्कुल पुरानी है और इसे आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।
इस भवन में परिवर्धन असंवेदनशील तरीके से किए गए हैं। उदाहरण के लिए, इस इमारत के बाहरी गोलाकार हिस्से में 1956 में जोड़ी गई दो नई मंजिलों ने मूल भवन के अग्रभाग को बदलते हुए सेंट्रल हॉल के गुंबद को छिपा दिया है। जाली वाली खिड़कियों को ढकने से संसद के दो सदनों के हॉल में प्राकृतिक रोशनी कम हो गई है।
93 साल पुरानी इस इमारत में अपनी संरचनात्मक मजबूती स्थापित करने के लिए समुचित दस्तावेजीकरण और मानचित्रण का अभाव है । चूंकि इसकी संरचनात्मक मजबूती को स्थापित करने के लिए बेधन परीक्षण नहीं किए जा सकते हैं, क्योंकि वे संसद के कामकाज को गंभीर रूप से बाधित कर सकते हैं, इसलिए इस भवन को भूकंपरोधी प्रमाणित नहीं किया जा सकता है । यह विशेष रूप से चिंता का विषय है क्योंकि दिल्ली का भूकंप जोखिम गुणॉक भवन निर्माण के समय के भूकंपीय क्षेत्र- II से भूकंपीय क्षेत्र- IV में स्थानांतरित हो गया है, जिसके जोन-V में बढ़ जाने की संभावना है।
अग्नि से सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि इस भवन को आधुनिक अग्नि मानदंडों के अनुसार डिजाइन नहीं किया गया है। इससे आपात स्थिति में, निकासी की व्यवस्था अत्यंत अपर्याप्त और असुरक्षित है।
उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि संसद भवन की क्षमता का विस्तार करना है, इसके बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना है और इसकी भूकंप सुरक्षा सुनिश्चित करनी है तो वर्तमान भवन की मरम्मत करके ऐसा करना संभव नहीं है। इसके लिए एक नए, उद्देश्यपूर्ण संसद भवन का निर्माण करना आवश्यक होगा।
माननीय लोक सभा अध्यक्षों अर्थात श्रीमती मीरा कुमार ने दिनांक 13.07.2012, श्रीमती सुमित्रा महाजन ने दिनांक 09.12.2015 और श्री ओम बिरला ने दिनांक 02.08.2019 के अपने पत्र में सरकार से संसद के लिए नए भवन के निर्माण का अनुरोध किया।
(Source: मिनिस्ट्री ऑफ़ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स, भारत सरकार Official Website)
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