क्या ऐसा नहीं होता कि आप खुद को अपने व्यस्तता को विराम देने के लिए; सोशल मीडिया कोर मुखातिब होते हैं लेकिन कुछ सरफिरे लोगों के बेतुके और भ्रामक पोस्ट आपके अच्छे खासे मूड को हीं कबाड़ा कर देते हैं।
हालांकि इस प्रकार के भ्रामक और तथ्यहीन पोस्ट को सोशल साइट पर डालना गलत होने के साथ हीं यह साइबर क्राइम के अधीन भी आता हैं। साइबर अपराध होने की स्थिति में संबंधित एजेंसी इससे निबटने के लिए है, लेकिन हम यहां बात कर रहें है ऐसे सोशल साइट के नकारात्मक पोस्ट से होने वाले हमारे मन और मस्तिष्क की क्षति के बारे में।
राजनीतिक प्रतिद्वंतिता, वैचारिक मतभेदों का होना एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है और इससे किसी को इनकार नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या इसके लिए यह जरूरी है की हम अपने सामाजिक और वैचारिक मर्यादाओं को भी भूल जाएं।।।
लेकिन आज अगर आप देखेंगे तो सोशल साइट पर विरोध दर्ज करने के लिए लोग गाली गलौज और अश्लीलता वाले पोस्टों की भरमार हो चुकी है।
कहने की जरूरत नहीं की ऐसे बिना सिर पैर वाले और बगैर तथ्यों वाले ये निरर्थक पोस्ट आपको कुंठाग्रस्त बनाने के साथ हीं आपके स्वस्थ मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करते हैं।
हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद ने कहा है कि विचारों की समानता ही दोस्ती का मूलमंत्र होता है।।।।फिर जब ऐसे लोगो को जिन्हे हम अपने सामान्य जीवन में दोस्त बनाने के काबिल नही समझते, तो क्या इन्हे सोशल साइट पर भी दोस्त बनाकर हम रिस्क नहीं ले रहे।
सोशल साइट्स पर भी कई सारे बुद्धिमान और स्वस्थ मानसिकता; वाले विद्वान लोग मौजूद हैं जिनसे काफी कुछ सीखी जा सकती है, फिर ऐसे लोगों को फ्रैंड बनाना क्या उचित नही होगी।
No comments:
Post a Comment