उन्होंने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में हरेक परिवार आर्थिक, शारीरिक या मानसिक तौर पर प्रभावित हुआ है। साथ ही परीक्षाओं को लेकर बनी अनिश्चित्ताओं से विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके शिक्षकों और अध्यापकों में भी तनाव बढ़ा है। अब सबका मानना है कि बोर्ड परीक्षाओं को लेकर जल्द निर्णय लिया जाए। मीटिंग के दौरान उपमुख्यमंत्री ने कहा की इस संकट के समय बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ कर बोर्ड परीक्षाओं का आयोजन करवाना बहुत बड़ी नासमझी होगी। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने की तैयारी की जा रही है और अभी भी प्रतिदिन लगभग 2.5 लाख कोरोना केस आ रहे है। ऐसे हालात में परीक्षा के लिए न तो बच्चे तैयार हैं न ही उनके पेरेंट्स और टीचर्स ।
उपमुख्यमंत्री ने कहा की पहले बच्चों को वैक्सीन उपलब्ध करवाई जाए उसके बाद परीक्षा ली जाए। अगर वैक्सीन नहीं उपलब्ध होती है तो परीक्षा रद्द कर दी जाये और 10 वीं की तर्ज पर मूल्यांकन कर रिजल्ट घोषित किया जाये। ये मूल्यांकन पूरे साल के यूनिट टेस्ट, प्री-बोर्ड परीक्षाओं, प्रैक्टिकल, पूर्व की कक्षाओं में बच्चे के प्रदर्शन के आधार पर हो सकता है । साथ ही विद्यार्थियों को ये सुविधा भी दी जाए कि यदि कोई अपने रिजल्ट से संतुष्ट नहीं हों तो सिर्फ उनके लिए भविष्य में परीक्षा आयोजित की जाये।
संकट की इस घड़ी में भारत सरकार की पहली प्राथमिकता बच्चों को वैक्सीनेट करने की होनी चाहिए। केंद्र सरकार फाइजर से बात करे जिसने 12 साल से ऊपर के बच्चों की वैक्सीन बनाई है। वो वैक्सीन भारत के 12वीं में पढ़ने वाले 1.4 करोड़ बच्चों के लिए उपलब्ध हो सकती है। इसी के साथ सभी शिक्षकों को भी प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन उपलब्ध करवाए। इसके बाद ही परीक्षा आयोजित करवाने की सोचे।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार हेल्थ एक्सपर्ट्स से बात करे कि भारत में बनी 18 वर्ष के लोगों की दी जाने वाले वैक्सीन क्या 17.5 वर्ष के बच्चों को दी जा सकती है। अगर एक्सपर्ट सहमत हों तो 12वीं में पढ़ने वाले लगभग 95% विद्यार्थी को भारत में उपलब्ध वैक्सीन दी जा सकती है क्योंकि वो 17.5 साल की उम्र से उपर हैं। उन्होंने कहा की यदि दिल्ली को 12वीं के विद्यार्थियों के लिए वैक्सीन मिलती है तो सरकार 2 दिन के भीतर सभी विद्यार्थियों को वैक्सीन लगाने में सक्षम है।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा तंत्र, बोर्ड सबका यही मानना है कि परीक्षा हो लेकिन ये केवल आदर्श समय में ही संभव है प्रैक्टिकल वर्ल्ड में बच्चों की जान जोखिम में रखकर परीक्षा लेना संभव नहीं है। इसलिए आज हमें एक अभिभावक के रूप में निर्णय लेने की ज़रूरत है कि हमारे बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या बेहतर होगा। समय की मांग है कि जब तक वैक्सीनेशन न हो जाये तब तक 12वीं की परीक्षा न हो ।
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