डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बताया कि विशेष रूप से लॉकडाउन अवधि के दौरान, कई लोगों ने न केवल अपनी प्रतिरक्षण स्थिति को बेहतर बनाने के लिए बल्कि एकाकीपन और व्यग्रता की यातनाओं से उबरने के लिए भी योग का सहारा लिया। उन्होंने कहा, कोविड के बाद के युग का एक परिणाम यह होगा कि कोरोना वायरस के खत्म हो जाने के बाद भी, जो लोग लॉकडाउन अवधि के दौरान योग के अभ्यस्त हो गए हैं, वे संभवतः अपने पूरे शेष जीवन काल में इसका अभ्यास करते रहेंगे और इस प्रकार, इसे एक जीवन पर्यन्त वरदान के रूप में बदल देंगे।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आम आदमी के जीवन में सुगमता लाना सुशासन का अंतिम लक्ष्य है और उन्होंने सद्गुरु के इस कथन का पुरजोर समर्थन किया कि प्रसन्न और प्रफुल्लित प्रशासक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रसन्नता का संचार करेंगे।
सद्गुरु ने अपने संबोधन में कहा कि भारत हमेशा से बिना किसी कठोर आस्था प्रणाली के साथ संतों की भूमि रहा है। इसमें कभी भी जीत की संस्कृति नहीं रही, बल्कि हमेशा से यह अन्वेषण की भूमि रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने गणतंत्र के फलने-फूलने के लिए इस लोकाचार को अनिवार्य रूप से बनाए रखना चाहिए।
सद्गुरु ने कहा कि कोरोना वायरस के लिए एक सचेत जिम्मेदार व्यवहार की आवश्यकता होती है और यह ज्ञान आम आदमी को अधिक लाभ पहुंचाने हेतु नेताओं और प्रशासकों के लिए और भी ज्यादा प्रासंगिक है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम.एन. भंडारी, आईआईपीए के उपाध्यक्ष श्री शेखर दत्त, आईआईपीए के निदेशक श्री एस.एन. त्रिपाठी, सुरभि पांडेय, अमिताभ रंजन, नवलजीत कपूर तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं आईआईपीए के संकाय ने कार्यक्रम में भाग लिया।
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