इस अभियान की शुरुआत देश भर के न्यूरोलॉजिस्टों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के स्थापना दिवस 18 दिसंबर 2020 से हुई। इस अभियान में आर्टेमिस हॉस्पिटल्स से न्यूरोलॉजी यूनिट के चीफ, पार्किंसंस विशेषज्ञ व स्ट्रोक यूनिट के को-चीफ डॉ. सुमित सिंह, कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी
डॉ. मनीष महाजन, न्यूरो इंटरवेंशन के स्ट्रोक यूनिट हेड व सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजश्रीनिवास पी और न्यूरोलॉजी के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. समीर अरोड़ा जैसे प्रतिष्ठित न्यूरोसर्जन की मौजूदगी देखी गई। इस वर्चुअल सेशन के माध्यम से, डॉक्टरों ने लोगों से संतुलित आहार, स्वस्थ जीवन शैली, व्यायाम औरधूम्रपान व शराब का सेवन करने वालों से इस कम कर स्वास्थ्य के प्रति एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया।
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हेडेक के बारे में बात करते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल्स के न्यूरोलॉजी यूनिट के चीफ डॉ. सुमित सिंह ने कहा, “हेडेक मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, यानी प्राइमरी और सेकेंडरी। माइग्रेन, क्लस्टर हेडेक और टेंशन हेडेक प्राइमरी कैटेगरी में आते हैं। आमतौर पर हेडेक तब तक चिंता का विषय नहीं है, जब तक कि यह परैलिसिस(पक्षाघात) या बेहोशी के साथ न हो।”
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एपिलेप्सी के बारे में, आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में न्यूरोलॉजी के एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. समीर अरोड़ा ने कहा, “एपिलेप्सी दुनिया में चौथा सबसे बड़ा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। ब्रेन में इलेक्ट्रिकल चेंज में अस्थायी बदलाव के कारण व्यवहार में होने वाले परिवर्तन के कारण इसके लक्षण का पता चलता है। दवाओं, आहार चिकित्सा और सर्जरी के संयोजन से कुछ हद तक इस डिसऑर्डर से निपटा जा सकता है।“
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आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में कंसल्टेंट-न्यूरोलॉजी डॉ. मनीष महाजन ने कहा, “मल्टीपल स्केलेरोसिस एक ऑटोइम्यून, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो 20 से 40 वर्ष की आयु के बीच होता है और मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है। यह आपके ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) को प्रभावित करता है और विजन, बैलेंस और मसल कंट्रोल संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है।”
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स्ट्रोक में समय पर उपचार के महत्व पर जोर देते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल्स में न्यूरो-इंटरवेंशन के स्ट्रोक यूनिट हेड व सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजश्रीनिवास पार्थसारथी ने कहा, “हर साल लगभग 10 लाख लोग स्ट्रोक की चपेट में आते हैं। समय पर उपचार से मृत्यु दर और मृत्यु संख्या कम हो सकती है। धुंधली नज़र, अस्पष्ट उच्चारण, संतुलन या समन्वय की हानि और चक्कर आने जैसे लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए और समस्या होने पर तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेनी चाहिए।”
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ऊपर वर्णित डिसऑर्डर के अलावा, भारत में ब्रेन ट्यूमर भी एक चिंता का विषय है। इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ कैंसर रजिस्ट्री (आईएआरसी) के अनुसार, भारत में हर साल 28,000 से अधिक ब्रेन ट्यूमर के मामले सामने आते हैं और ब्रेन ट्यूमर के कारण 24,000 से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।
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